भारतीय छंदशास्त्र और ऊर्दू बहर- एक तुलनात्मक अध्ययन

भारतीय छंदशास्त्र की परंपरा बहुत पुरानी और समृद्ध है। वेद के छह अंगों में शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण और ज्योतिष के साथ ‛छंद' का भी समावेश है। छंदशास्त्र पर सबसे प्राचीन ग्रंथ पिंगल का है। आगे चल कर केदारभट्ट, जयदेव, हेमचंद्र आदि आचार्यों ने छंदशास्त्र पर विस्तृत ग्रंथ लिखे। इन ग्रंथों मे 600 से ज़्यादा छंदों के लक्षणों का वर्णन है। भारतीय छंदशास्त्र के नियम वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत, और हिंदी, मराठी आदि सभी प्राकृत भाषाओं के लिए समान है।

ऊर्दू एक भारतीय भाषा ही है। यद्यपि उसमें  अरबी तथा फ़ारसी शब्दों की भरमार हैं,  उर्दू के मूल धातु (क्रिया वाचक शब्द) और व्याकरण हिंदी/हिंदुस्तानी पर ही आधारित है। लेकिन कविता के क्षेत्र में ऊर्दू ने भारतीय छंदशास्त्र को नही अपनाया। ऊर्दू के बहर यानि वृत्त अरबी तथा फ़ारसी छंदशास्त्र पर आधारित हैं।

आधुनिक काल में कविता को छंदों के बंधनों से रिहा करने का प्रयास हुआ। ऐसी  कविता को मुक्तछंद या ‛आजाद नज़्म' कहते है। हिंदी, मराठी तथा अन्य प्राकृत भाषाओं के कई महान कवियों ने मुक्तछंद में रचना की है। जैसे हिंदी में सूर्यकांत त्रिपाठी ‛निराला' जी, मराठी में विंदा करंदीकर, ‛अनिल' आदि। आज बहुत सारे कविगण मुक्तछंद में रचना करते हैं। मुक्तछंद में कवि अपने आशय की अभिव्यक्ती बडी आसानी से कर सकता है, इस लिए इन कवियों कि संख्या बढ़ रही है। लेकिन इन रचनाओं को उतनी लोकप्रियता नही मिलती जितनी छंदोबद्ध रचनाओं को मिलती है। इसके कारण अनेक है। गेय काव्य पंक्ति को सुनकर श्रवण इंद्रिय को जो आनंद मिलता है, वह मुक्त कविता से नही मिलता। गेय कविता बड़ी आसानी से कंठस्थ हो जाती है, और रसिक उसे गुनगुना सकता है। मुक्तछंद को याद रखना कठिन है। गेय कविता को प्रथितयश संगीतकार तथा गायक जब संगीत से अलंकृत करते है, तब सोने पर सुहागा हो जाता है। इस लिए छंदोबद्ध कविता का और छंदशास्त्र का महत्त्व आज भी अबाधित है।

अन्य भारतीय भाषाओं की तरह ऊर्दू में भी प्रारंभिक काल से छंदोबद्ध रचना होती रही है, जिसे ‛पाबंद नज़्म' कहा जाता है।  ऊर्दू में भी मुक्तछंद की भांति ‛आजाद नज़्म'  (free verse) और नज़्म मुअर्रा (blank verse) प्रयोग हुए है। ‛आजाद नज़्म' में  बहर (वृत्त) , और काफ़या (यमक), दोनों का बंधन नही होता। नज़्म मुअर्रा में बहर का बंधन होता है लेकिन यमक का बंधन नही होता। लेकिन इन काव्य प्रकारों को  भी ‛पाबंद नज़्म' जैसी मक़बूलियत नहीं मिली। इसलिए ऊर्दू शायरी में भी माहिरत हासिल करने के लिए बहर का अभ्यास ज़रूरी है।

आइये, अब देखते हैं, भारतीय और अरबी/फ़ारसी छंदशास्त्र में क्या साम्य है, क्या फ़र्क़ है।

भारतीय छंदशास्त्र के अनुसार छंद या वृत्त तीन प्रकार के होते है-

1. अक्षरवृत्त – वेदों में पाये जाने वाले वृत्त इस प्रकार के होते हैं, जैसे गायत्री, त्रिष्टुभ, अनुष्टुभ, पंक्ति, जगति आदि। इन वृत्तों में हर एक पंक्ति में अक्षरों की संख्या निश्चित होती है। उदा.
गायत्री छंद- प्रत्येक पंक्ति में  8 अक्षर; ऐसी 3 पंक्तियाँ
अनुष्टुभ्- प्रत्येक पंक्ति में 8 अक्षर; ऐसी चार पंक्तियाँ  
लेकिन अक्षरवृत्तों में लघु गुरु का क्रम हर एक पंक्ति में समान नही होता। कुछ अक्षरों का लघु गुरू क्रम समान होता है और कुछ अक्षरों का विभिन्न होता है। उदा. अनुष्टुभ छंद (श्लोक)

श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं लघु सर्वत्र पंचमम्। द्विचतुष्पादयोः ऱ्हस्वं, सप्तमं दीर्घमन्ययोः।।

(प्रत्येक पंक्ति के पहले चार अक्षरों के लघु गुरु क्रम के बारे में कोई नियम नही। षठा  अक्षर सर्वत्र गुरु, पाँचवा लघु। आठवा लघु या गुरु। सातवाँ अक्षर दूसरी और चौथी पंक्ति में गुरु, पहिली और तीसरी में लघु)

2. मात्रावृत्त- इसे जाति भी कहते है। इस प्रकार में अक्षरों की बजाय मात्राएँ गिनी जाती है। लघु अक्षर के लिए एक और गुरू के लिए दो मात्राएँ गिनी जाती हैं। प्रत्येक पंक्ति में अक्षरों की संख्या पर बंधन नही, लेकिन मात्राएँ निश्चित होती हैं। यथा 'आर्या -
यस्या प्रथमे पादे द्वादश मात्रा तथा तृतीयेsपि। अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पंचदशा सार्या।।
( आर्या वृत्त की पहली और तीसरी पंक्ति में 12, दूसरी पंक्ति में 18 तथा चौथी पंक्ति में 15 मात्राएँ होती है)

प्राकृत भाषाओं में अधिकांश काव्यरचना मात्रावृत्तों में हुई है।

3. अक्षर गण वृत्त – इस प्रकार में हर एक पंक्ति में अक्षरों की संख्या भी सुनिश्चित होती है और लघु गुरु का क्रम भी निश्चित होता है। कालिदास का मेघदूत (मंदाक्रांता), आदि शंकराचार्य का सौंदर्यलहरी (शिखरिणी), मराठी मंगलाष्टक (शार्दूलविक्रिडित) इसके उदाहरण हैं।

इस के अलावा कुछ मिश्र प्रकार भी है। जैसे दोहा, चौपाई आदि, जिनमें मात्रा वृत्त के नियमों के अलावा गुरु लघु क्रम के कुछ नियम होते हैं, जिनका पालन करना पड़ता है।  (दोहा- अन्त्य अक्षर लघु, उपान्त्य गुरु)

मराठी में ओवी, अभंग, आरती, पोवाडा नामक काव्य प्रकार है जो उपरोक्त तीनों प्रकारों में नही बैठते, और रचना की दृष्टि से शिथिलता से प्रचुर है।

चलिए अब देखते हैं कि अरबी/फ़ारसी छंदशास्त्र के मुताबिक काव्यरचना कैसी होती है।

अरबी/फ़ारसी में वृत्त को बहर कहते है। यही बहर ऊर्दू ने भी अपनाया है।

संस्कृत में (या हिंदी मे) अक्षर गण वृत्तों के लिए तीन तीन अक्षरोंके  गुट बनाये जाते हैं जिन्हे गण कहा जाता हैं। उदा. र गण = गुरु लघु गुरु, (गा ल गा) , म गण = गुरु गुरु गुरु (गा गा गा), त गण = गुरु गुरु लघु (गा गा ल), य गण =  लघु गुरु गुरु (ल गा गा),  आदि 8 गण।

ग्रीक, लैटिन, अंग्रेजी मे दो, तीन या चार अक्षरों के गुट बनते हैं, जैसे लघु गुरु ( ल गा) जिसे iamb कहते हैं। ऐसे चार iamb की पुनरावृत्ती से बननेवाले वृत्त को Tetrametre Iambic कहते हैं।

अरबी/फारसी/ऊर्दू में दो तीन चार या पाँच अक्षरों के गुट बनते हैं,  जो संस्कृत गणों के समान हैं। इन गुटों का वर्णन करने के लिए 'अफ़ाइल' नामक परिभाषा का प्रयोग होता है, यह परिभाषा ‛फेल' = क्रिया करना इस अरबी शब्द से बनी है। ‛फेल' शब्द के तीन अक्षर (फे, अइन, लाम)  इस परिभाषा में इस्तेमाल होते हैं ।  अब प्रत्यक्ष उदाहरण ही देखते हैं-

(लघु =ल और गुरु =गा)

गुरु (गा) = अरबी में   फ़ा
गुरु- लघु ( गाल) = अरबी में   फ़ा अल्
गुरु-गुरु-गुरु  (गागागा- म गण)  = अरबी में    मफ़् ऊ लुन्
गुरु- गुरु-लघु (गागाल- त गण)  = अरबी में    मफ़् ऊ  ल
लघु-गुरु-गुरु (लगागा- य गण) = अरबी में    फ़ ऊ लुन्
गुरु- लघु- गुरु (र गण)  = अरबी में    फ़ा इ  लुन् 
गुरु- लघु- गुरु- गुरु ( गालगागा) = अरबी में   फ़ा इ ला तुन्
लघु-गुरु-लघु-गुरु (लगालगा)  = अरबी में   म फ़ा इ लुन्
लघु-लघु-गुरु-लघु-गुरु (ललगालगा) = अरवी में   मु त फ़ा इ लुन्

इस तरह  अक्षरों के  विभिन्न गुटों के  20  अफाइल (गण) बनते  हैं।  और इन 'अफ़ाइलों' के (गणों के) विभिन्न प्रकार के संयोग  से वृत्त यानि बहर बनते हैं।

बहर कितने हैं? अरबी फारसी ग्रंथों में 134 के करीब बहरों के लक्षण दिये हैं, जैसे कि भारतीय छंदशास्त्र के ग्रंथों में 600 के करीब वृत्त दिये है। लेकिन इन 600 वृत्तों में से 8-10 ही  वृत्त 95 % काव्यनिर्मिति में प्रायः उपयोग में लाये जाते हैं। ऊर्दू शायरी में आम तौर पर इस्तेमाल होनेवाले बहरों की संख्या भी कम हैं। प्रिचेट और ख़ालिक़ की किताब Urdu Meter, a practical handbook में 37 वृत्तों की सूची दी है जो आम तौर पर उर्दू शायरी में पाये जाते  हैं। ख़ुद ग़ालिब ने अपनी संपूर्ण शायरी में सिर्फ 19 बहरों का इस्तेमाल किया है।

अब बहर के विश्लेषण के लिए  ग़ालिब का एक शेर लेते हैं।

रहा गर् कोई ता क़यामत् सलामत्
फिर् इक् रोज मरना है हज़रत् सलामत्!

(अरे श्रीमान, अगर आप दीर्घ काल तक जिंदा रहें, फिर भी अमर थोड़े ही होंगे। मृत्यु सब के लिए अटल है)

भारतीय छंदशास्त्र के अनुसार इन मिसरों का चलन इस प्रकार होगा-
लगागा लगागा लगागा लगागा  (गण- य य य य । यह अपना सुपरिचित भुजंगप्रयात वृत्त है। समर्थ रामदास के ‛मनाचे श्लोक' इसी वृत्त में है।)

अरबी  छंदशास्त्र के हिसाब से इस मिसरे के अफाइल इस कदर होंगे-
फ़ ऊ लुन्    फ़ ऊ लुन्    फ़ ऊ लुन्      फ़ ऊ लुन्

फ़ ऊ लुन् की चार बार पुनरावृत्ति करने पर जो बहर बनता है, उस अरबी बहर का नाम है –
मुतकारिब मुसम्मन महज़ूफ़ । यह भुजंगप्रयात का हमशकल है।

यह एक उदाहरण है। ढूँढ़ने पर ऐसे कई मिलेंगे  जिसमें भारतीय और अरबी वृत्त मिलते जुलते हैं। जैसे साम्य के उदाहरण हैं, वैसे भेद के भी है। उदाहरणार्थ-

ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल-
कोइ उम्मीद बर् नहीं आती
कोइ  सूरत नज़र नहीं आती  ( कोई का ई ऱ्हस्व या दीर्घ वना लेते हैं, बहर के हिसाब से)
विश्लेषण-
गालगा गालगा लगागा गा  ( र,र,य, गा गण)

अरबी छंदशास्त्र में इसका विश्लेषण थोडा अलग तरीके से होगा। चार अक्षरोंका एक गुट बनाया जाएगा।
फ़ा इ ला तुन्    म फ़ा इ लुन्     फ़ा   फ़ा

और इनके संयोग से जो बहर बनेगा उसका नाम है - ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ मक़तूअ خفیف مسدّس مخبون محذوف مقطوع

इस लंबे चौडे नाम वाले वृत्त का हमशकल   (र,र,य, गा)  भारतीय छंदशास्त्र में ढूँढ़ने की कोशिश की। कोशिश नाकामयाब रही। ऐसे  लघुगुरु क्रम  वाला वृत्त हमारे छंदशास्त्र में नहीं है।

तो इस वृत्त को अरबी से आयात क्यूँ न कर लें?  भारतीय छंदशास्त्र को एक नये वृत्त की देन मिलेगी। मराठी के कविवर और छंदशास्त्र के अभ्यासक माधव त्रिंबक पटवर्धन (माधव ज्यूलियन) पर्शियन के प्रकाण्ड पंडित थे। उन्होंने डॉक्टरेट के लिए 'छंदोरचना' नामक ग्रंथ की रचना की है। उन्होंने कई फारसी और अरबी वृत्त मराठी में आयात किये। यह काम हिंदी में भी हो सकता है।

यहाँ पर एक बात और गौर करने लायक है- ऊर्दू के सभी वृत्त अक्षरगणवृत्त हैं, क्यों कि उनमें अक्षरों की संख्या भी निश्चित है और लघु गुरु का क्रम भी निश्चित है। वृत्त के तीनों प्रकारों में यह प्रकार रचना की दृष्टि से सबसे कठिन है, क्योंकि इसमें   शिथिलता की ज़रा भी गुँजाइश नहीं होती। प्राकृत कवियों ने अधिकतम रचना मात्रा वृत्तों में की है, जो रचना के लिए अक्षरगणवृत्तों से सुलभ हैं। लेकिन  ऊर्दू शायरों ने संस्कृत कवियों की भांति अधिकतम रचना अक्षरगणवृत्तों मे की है। इसलिए, उनकी प्रतिभा की दाद देनी पडेगी!

अक्षरगणवृत्त यानि बहर का यह काठिन्य संगीत के लिए उपकारक सिद्ध होता है, क्यों कि लघु गुरु का क्रम सुनिश्चित होने की वजह से रचना अत्यंत सुडौल और प्रमाणबद्ध हो जाती है। शायद इसी वजह से ऊर्दू शायरी मौसिक़ी के लिए अत्यंत अनुकूल है, और हिंदी फ़िल्मों के अधिकतम गाने हिंदुस्तानी/ ऊर्दू बहरमें  ही लिखे जाते हैं।